लाइक शेयर कमेंट की दसवीं कड़ी के मेहमान थे बर्ड्स एंड वाइल्ड लाइफ रिसर्चर श्री मोहित साहू जी. इसी महीने अपना 60वां जन्मदिन मनाने वाले मोहित जी उम्र के इस पड़ाव में जिंदादिली की मिसाल हैं. उनसे मिलकर आप खुद को युवा महसूस करेंगे. गज़ब के सेंस ऑफ ह्यूमर के धनी श्री मोहित आपको सम्मोहित कर लेते हैं. कंसोल की युवा टीम के लिए मोहित जी से बातचीत बहुत ही ख़ास रही, साथ ही राहुल सिंह जी एवं उनकी धर्मपत्नी नम्रता सिंह जी की गरिमामयी उपस्थिति ने इस मुलाकात को और विशेष बना दिया. प्रस्तुत है लाइक शेयर कमेंट की 10वीं कड़ी में मोहित साहू जी से बातचीत के कुछ अंश
बचपन से ही प्रकृति और पक्षियों के नजदीक रहा
मेरे पिता वन विभाग में कार्यरत थे. उनकी पोस्टिंग अधिकतर फॉरेस्ट एरिया में होती थी इसलिए मुझे मध्यप्रदेश और छ्त्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों को करीब से जानने का अवसर बचपन से ही मिलने लगा. हालांकि बचपन में ऐसा कोई सपना नहीं था कि बड़ा होकर मुझे पक्षियों या वाइल्ड लाइफ पर रिसर्च करना है लेकिन प्रकृति ने शुरू से मुझे अपनी ओर आकर्षित किया. फिर धीरे धीरे कब ये इंटरेस्ट से पैशन में बदल गया पता ही नहीं चला.
घूम-घूम कर पूरी हुई पढ़ाई
मेरे पिता सरकारी नौकरी में थे. हर साल-दो साल में उनका ट्रान्सफर होने से मेरी भी पढ़ाई घूम-घूमकर पूरी हुई. अविभाजित मध्यप्रदेश के करीब 9 अलग-अलग जगहों से मैंने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करते हुए मैट्रिक दुर्ग के सरकारी स्कूल से पूरी हुई. इसके बाद नागपुर के जीएस कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकॉनॉमिक्स से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की. मैं आगे भी पढ़ना चाहता था और एमबीए का स्कोप देखते हुए मैंने रविशंकर यूनिवर्सिटी से बिजनेस मैनेजमेंट का डिप्लोमा कोर्स पूरा किया. इसके बाद निकल पड़े नौकरी की राह पर. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने रायपुर की एक प्राइवेट कंपनी में एग्जीक्यूटीव के पोस्ट से अपनी नौकरी शुरू की. धीरे धीरे कई प्रोफेश्नल स्किल्स सीखते हुए मैंने खुद को और तराशा. अलग अलग तरह के काम जानने की कोशिश करना और उसे बेहतर तरीके से कंप्लीट करने का एटिट्यूड मेरे भीतर शुरू से था, जिसके चलते मुझे अपने करियर में बहुत कुछ सीखने को मिला और मैं सीनियर मैंनेजर के प्रोफाइल तक पहुंच गया.
एक हादसे ने दुनिया बदल दी
ये साल 2002 के अक्टूबर महीने की बात है. दीपावली की तैयारियां चल रही थीं. पूरा शहर रौशनी से जगमगा रहा था. हमारे घर में भी हर साल की तरह इस बार भी दिवाली बड़े धूम-धाम से मनाने की तैयारियां हो रही थी. 28 अक्टूबर की उस शाम को दफ्तर का काम खत्म कर घर लौट रहा था. अगले दिन धनतेरस के साथ ही 5 दिनों तक मनाए जाने वाले हमारे सबसे बड़े त्यौहार की शुरुआत होने वाली थी.
मैं घर के लिए निकला ही था कि रास्ते में एक चौक के पास मुड़ते हुए मेरी मोटरसाइकल का बैलेंस बिगड़ा और मैं अपनी गाड़ी के साथ ही रोड पर गिर पड़ा. गिरने पर ऐसा नहीं था कि मुझे बहुत गंभीर चोट आई हो, गाड़ी को भी ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा था इसलिए मैंने खड़े होने की कोशिश की, लेकिन मैं उठ नहीं पा रहा था. आस-पास के लोग मदद के लिए पहुंचे उन्होंने मुझे उठाने की कोशिश की, मैं खड़ा तो हुआ लेकिन तुरंत ही फिर से गिर पड़ा. मेरी पीठ में दर्द तो हो रहा था लेकिन पता नहीं था कि मेरे साथ कितना बड़ा हादसा हो चुका है.
इसके बाद मेरी आंखें सीधे अस्पताल में खुली. वहां एक्स-रे और बाकी जरूरी टेस्ट करने के बाद डॉक्टरों ने बताया की इस एक्सीडेंट से मेरे रीढ़ की हड्डी यानी स्पाइन में गहरी चोट लगी है और इसके चलते गर्दन के नीचे शरीर के पूरे हिस्से को लकवा मार गया है. मेरे और मेरे परिवार के लिए इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता था. इस छोटे से एक्सीडेंट ने इतनी बड़ी चोट दी जिससे मैं जीवन भर उबरने वाला नहीं था. ये पल बहुत ही दर्दनाक था. आप खुद ही सोचिए एक अच्छा भला सेल्फ डिपेंडेंट और दौड़ने-भागने वाला इंसान 24 घंटे में इतना लाचार हो गया कि वह बिस्तर से उठना तो दूर, बिना किसी की मदद के एक घूंट पानी नहीं पी सकता…. हो सकता है आप अंदाजा भी न लगा पाएं.
परिवार, दोस्त और इच्छाशक्ति ने जिंदा रखा
मेरे साथ कोई मामूली हादसा तो हुआ नहीं था कि कुछ दिनों के बाद मैं ठीक हो जाऊं, ये तो परमानेंट इंजरी थी. ऐसा नहीं है कि दुनिया में सिर्फ मेरे साथ ही इतना बूरा हुआ, मेरे परिचय के कुछ और भी लोग रहे जिन पर कुदरत का ऐसा ही कहर टूटा और वो इससे उबर नहीं पाए. इंसान डीप्रेशन से इतना घिर जाता है कि उसके जीने इच्छा खत्म हो जाती है. अधिकतर लोग बिना किसी बिमारी के सिर्फ अकेलापन और दूसरों पर अपनी जिंदगी के निर्भर हो जाने के चलते हार मान लेते हैं औऱ उनके भीतर जिंदगी की कोई चाह बाकी नहीं रह जाती. लेकिन मैं अपने आप को खुशकिस्मत मानता हूं कि मेरे परिवार और मेरे दोस्तों ने मुझे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया. मां-पिता जी के लिए अपने जवान बेटे को बिस्तर पर लाचार पड़े हुए देखने से ज्यादा दुख की बात और क्या हो सकती है लेकिन उन्होंने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया. मेरी पत्नी रितु जो सच में मेरी अर्धांगिनी है, उसने मेरी खातिर बहुत कुछ सहा है. मेरा सौभाग्य है कि मुझे रितु जैसी पत्नी मिली. सभी के कहने पर भी रितु ने कोई भी मेल नर्स की मदद न लेते हुए मेरी देखभाल की. एक्सीडेंट के बाद लंबे समय तक मैं बिस्तर पर पड़ा रहा. डॉक्टर्स ने कह दिया था कि सिर्फ फिजियोथैरेपी से ही कुछ सुधार की गुंजाइश है इसके अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता. मेरे परिवार के सहयोग से ही मैंने भी अपनी कोशिश में कोई कमी नहीं छोड़ी और लगातार फिजियोथैरेपी की प्रैक्टिस से धीरे-धीरे मैं अपने पांव पर खड़ा हो सका. मेरे दोस्तों ने हमेशा मेरा साथ दिया और मुझे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया. यही लोग मेरी सच्ची ताकत हैं.
सेंस ऑफ ह्यूमर कभी खत्म न होने दें
मेरे हिसाब से सेंस ऑफ ह्यूमर की परिभाषा है खुद पर हंसने का हौसला होना. दूसरों पर हंसना सबसे आसान काम है. कुछ खुशमिज़ाज लोगों के पास ये कला होती है कि वो दूसरों पर हंसते हुए अन्य लोगों को भी हंसा देते हैं. लेकिन मुझे लगता है कि जो इंसान खुद पर या खुद की कमी पर भी हंस सकता है उसके पास असल मायने में सेंस ऑफ ह्यूमर है. मैंने भी अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने के लिए इसी का सहारा लिया. आज 14 साल हो गए उस हादसे को मैं जानता हूं कि घड़ी की सुई न तो वापस दौड़ेगी न ही मैं पहले जैसा हो पाउंगा. लेकिन मेरा विल पॉवर, मेरी खुशमिज़ाजी और मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर, मुझसे कोई छीन नहीं सकता और मैं इसे कभी मरने नहीं दूंगा.
आकांक्षा स्कूल में मैंने जिंदगी को दूसरे नजरिए से देखना सीखा
श्री केके नायक जी द्वारा मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों के लिए शुरू किए गए आकांक्षा स्कूल में मैंने अपनी जिंदगी के 6 साल गुज़ारे. वहां अलग अलग उम्र और पारिवारिक पृष्ठभूमि के बच्चों की देखभाल और ट्रेनिंग होती है. उन बच्चों को देखकर मैंने जिंदगी को दूसरे नजरिए से देखना सीखा. मैं शायद शब्दों में ये बयां न कर पाऊं की उनके बीच वक्त गुज़ार कर मैंने कैसा महसूस किया. उन बच्चों की ट्रेनिंग के दौरान जब उनके भीतर कुछ नए स्किल हम डेवलप कर लेते थे तो दिल को बहुत तसल्ली मिलती थी. वहीं कुछ बच्चों के माता-पिता जिनकी मानसिक स्थिति डॉक्टरी भाषा में तो सही होती थी, लेकिन उनके पागलपन को भी जानने का मौका मिला. कुछ लोग थे जो अपने बच्चे की इस कमी के साथ उसे पूरी तरह नहीं अपना पाते इसलिए उनका अजीब रवैया देखने को मिलता था. स्कूल प्रबंधन में 6 वर्षों तक सेवा देकर मुझे जिंदगी का एक और रंग समझने का अवसर मिला.
बहुत बेहतरीन और आश्चर्यजनक है पक्षियों की दुनिया
अपनी बातचीत के दौरान मोहित जी ने पक्षियों और वाइल्डलाइफ के बारे में बहुत ही इंटरेस्टिंग बातें बताईं. मसलन खूबसूरत और अनोखा घोंसला बनाने वाले बया पक्षी भी अनोखे होते हैं. उन्होंने बताया कि बया (मेल) पक्षी जब अपना घोसला बनाता है, तो आधा घोंसला बना लेने के बाद वो अपनी पार्टनर (फीमेल बया) को अपना घोंसला दिखाने के लिए लेकर आता है. अगर फीमेल बया को वो घोसला पसंद आया तो दोनो की पेयरिंग होगी और वो दोनों साथ मिलकर उसे बनाते हैं और फिर उनकी मेटिंग होती है. लेकिन यदि फीमेल बया को वो घोसला पसंद नहीं आया तो उन दोनों की पेयरिंग नहीं होगी. इसी तरह उन्होंने बताया कि पहाड़ी मैंना जो कि छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी है वो इंसानों तक की आवाज निकालने में माहिर होती है. उन्होंने अपने कानों से उसे इंसान के आवाज निकालते सुना है. इसी तरह किंगफिशर, ड्रैंगो, कोयल के बारे में भी कई रोचक जानकारियां सुनकर युवा कंसोलर्स के आश्चर्य का ठिकाना ही न रहा. सभी ने कई सवाल पूछकर अपनी जिज्ञासा शांत की. अंत में सभी मोहित जी के उस प्रस्ताव से खुशी से उछल पड़े जब उन्होंने सभी को किसी दिन प्लान बनाकर अपने साथ बर्ड्स फोटोग्राफी सेशन पर चलने को कहा.
मोहित जी की इन बातों को सभी ध्यान से सुन रहे थे तभी उन्होंने आगे अपनी बात रखते हुए कहा कि हम सभी को अच्छे बुरे दौर से गुजरना होता है और जिंदगी सभी का इम्तिहान लेती है. अपने साथ हुए हादसे को लेकर मेरी ईश्वर से वैसे तो कोई शिकायत नहीं है लेकिन एक सवाल जहन में आता है कि मेरी परीक्षा लेते हुए इतना आउट ऑफ सिलेबस सवाल पूछने की क्या जरूरत थी. इसके बाद पूरे हॉल में ज़ोर से हंसी ठहाके गूंज उठे. हर किसी ने इतने गंभीर मसले पर मोहित जी की जिंदादिली को दिल से सलाम किया.
एक शानदार, खुशमिज़ाज और जिंदादिल इंसान मोहित जी ने लाइक शेयर कमेंट के मंच में पधार कर इसका स्तर और ऊंचा कर दिया. इसके साथ ही इस पहल की 10 कड़ियां भी पूरी हुई.
जानकारी साझा करने के उद्देश्य से किए जा रहे प्रयास को आगे बढ़ते हुए देखकर हमारी पूरी टीम को बहुत खुशी हो रही है.
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