डोंगीतराई से दिल्ली तक एक युवा संघर्ष के कहानी की गूंज. 0

Like-Share-Comment   प्रहलाद से बातचीत

(Episode-7 with Prahlad Patel)

Prahlad Patel -Goonj

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के एक छोटे से गांव डोंगीतराई में एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए प्रहलाद पटेल. अपने गाँव से दिल्ली की सामाजिक संस्था “गूंज” तक का उनका सफर अपने आप में अनोखा है. गांव के परिवेश में पले-बढ़े प्रहलाद ने आर्थिक विषमताओं के बीच अपने हौसले और जज्बे से आज जो मुकाम हासिल किया है वो सभी युवाओं के लिए प्रेरणादायी है. गांव से निकलकर दिल्ली तक के सफर और वर्तमान में छत्तीसगढ़ में कार्य कर रहे प्रहलाद ने अपनी जिंदगी से जुड़े सभी पहलुओं और अपने कार्यक्षेत्र के अनुभवों को कंसोल ग्रुप के कार्यक्रम लाइक-शेयर-कमेंट के 7वें एपिसोड में साझा किया.


रायगढ़ से दिल्ली का सफ़र

प्रहलाद महज 10 साल के थे जब उनके परिवार ने डोंगीतराई गांव छोड़कर जांजगीर जिले के गाँव लगरा जाने का फैसला लिया. नए गांव में उनकी प्रारंभिक शिक्षा शुरू हुई. इसके बाद माध्यमिक शिक्षा के लिए उन्हें घर छोड़कर अपने ननिहाल आरंग जाना पड़ा. आरंग में नवमीं, दसवीं की पढ़ाई के बाद उच्चतर माध्मिक शिक्षा बिलासपुर में पूरी की. इसके बाद वे मेडिकल एंट्रेंस पीएमटी की तैयारी करने भिलाई पहुंचे. लेकिन कठिन आर्थिक स्थिति के चलते सीमित संसाधनों से परीक्षा की तैयारी की मजबूरी से उनकी तैयारी पर फर्क पड़ा और मेडिकल में दाखिला नहीं हो सका. पीएमटी की विफलता के बाद परिवार वालों की सलाह से वे वापस रायगढ़ चले गए वहां बीएससी प्रथम वर्ष में दाखिला लिया लेकिन अपने पहले साल के परीक्षा परिणाम में प्रहलाद फेल हो गए. प्रहलाद बताते हैं कि इस वक्त उनके हौसले ने जवाब दे दिया था. इन सभी परिस्थितियों के बीच युवा प्रहलाद उलझ से गए थे. वे अपना लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पा रहे थे कि आखिर उन्हें आगे कैसे बढ़ना है और सही दिशा कौन सी है जिसमें वे आगे बढ़ सकें. साथ ही परिवार वालों की उम्मीदें और अपेक्षाएं उनको भीतर ही भीतर परेशान करने लगी थी. इसी उलझन में उन्होंने दिल्ली जाने का फैसला लिया. उनके फैसले पर पिता ने नाराजगी जताई पर उन्होंने किसी भी तरह अपने पिता को मना बुझा लिया और दिल्ली के लिए चल पड़े अपने कंधों पर उम्मीदों का पिटारा लिए और बाजुओं में जज्बे की ताकत लिए.

Prahlad Patel -Goonj

दिल्ली शहर के उलझनों के बीच गूंजने दिखाई एक नई दिशा

दिल्ली पहुंचने के बाद उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में जाने का फैसला लिया और प्रतिष्ठित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय पहुंचे. यहां दाखिला लेने के लिए लिखित परीक्षा पास किया पर साक्षात्कार में असफल हो गए. इस तरह कुछ असफलताओं से घिरकर वे दिशाहीन होते जा रहे थे. उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था की आगे करना क्या है? इसी बीच वे कई सामाजिक संस्थाओं के आयोजन में बतौर दर्शक के रूप में जाने लगे साथ ही किताबों में उनकी रूचि बढ़ने लगी. प्रेरणादायी किताबों की ओर उनका विशेष झुकाव होने लगा.
इसी बीच एक सेमिनार में पहली बार वे गूंज के संस्थापक अंशु गुप्ता से मिले.उनके संपर्क में आए और फिर शुरू हुआ एक नया सफर नई दिशा की ओर जहां सेवाभाव से गरीब लोगों की सहायता की जाती है. जी हां प्रहलाद सामाजिक संस्थान गूंज से जुड़े. गूंज संस्थान अपनी तरह का देश एक अनोखा संस्थान है जो पुराने कपड़ों को न सिर्फ गरीब ज़रूरतमंदो तक पहुंचाता है बल्कि इनके जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में तरक्की का एक नया मॉडल भी पेश करता है. गूंज के प्रयासों से भारत के कई गांवों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं. 21 से भी अधिक राज्यों में गूंज लगातार गरीबों और असहायों के लिए कार्यरत है. इसी के तहत प्रहलाद पटेल को गूंज के कार्यों की देख-रेख एवं इस संस्थान को मजबूती से स्थापित करने के लिए मध्य भारत का जिम्मा सौंपा गया जिसके अंतर्गत उनका गृहराज्य छत्तीसगढ़ सहित मध्यप्रदेश, गुजरात, महारष्ट्र आता हैं. इन सभी राज्यों में गूंज के क्रियाकलापों को पूरी तरह व्यवस्थित रूप से संचालन करना एक बेहद कठिन चुनौती थी पर प्रहलाद पटेल ने इसे कर दिखाया. और वे अभी वर्तमान में छत्तीसगढ़ में निवासरत हैं. प्रहलाद बताते हैं कि उनकी संस्था कबीरधाम, राजनांदगांव और रायगढ़ जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव के लिए पिछले 2-3 सालों से काम कर रही है.

Prahlad Patel -Goonj

बदलाव देख कर खुशी मिलती है

कठिन परिस्थियों से लड़ना अब प्रहलाद की आदत हो गई है. उनका मानना है कि आपकी प्रतिस्पर्धा केवल और केवल स्वयं से है. जब घर से कुछ करने का सपना लेकर दिल्ली के लिए निकले थे, तो राह बहुत धुंधली थी, एकदम क्लीयर नहीं था कि कैसे आगे बढ़ना है और कहां जाना है, बस जिद थी कुछ कर दिखाना है. चुनौतियां तो सभी की जिंदगी में आती हैं, लेकिन जो आखिरी तक डटे रहे वही कुछ अलग कर पाता है. आज प्रहलाद खुश हैं अपने फैसलों से और अब तक तय किए अपने सफर से. उन्हें सबसे ज्यादा खुशी मिलती है जब गांव में किए जा रहे काम का असर देखते हैं. लोगों की जिंदगी में हो रहे सकारात्मक बदलाव को ही वो अपनी सफलता मानते हैं. प्रहलाद कहते हैं कि मैं एक छोटे से गांव से निकलकर दिल्ली पहुंचा, अंग्रेजी तो दूर शुद्ध हिंदी बोलने में भी तकलीफ होती थी वहां से अपने सफर की शुरूआत करके आज यहां तक पहुंचा हूं, लेकिन ये कोई बहुत बड़ी सफलता नहीं है. मेरी व्यक्तिगत सफलता से ज्यादा मेरे कारण समाज में हुए बदलाव के ज्यादा मायने होने चाहिए.

आमतौर पर हम अपने सफर में थककर जहां घुटने टेक देते हैं, बस उससे थोड़ी ही दूर में हमारी मंजिल इंतजार कर रही होती है.

Prahlad Patel Konsole Group Goonj

सोशल मीडिया है आज की जरुरत

प्रहलाद पटेल ने कंसोल ग्रुप के कार्यक्रम लाइक-शेयर-कमेंट में बताया कि आज सोशल मीडिया का लोगों के जिंदगी में बेहद महत्वपूर्ण स्थान है. उनकी संस्थान गूंज से भी सोशल मीडिया के माध्यम से देश भर के लाखों लोग जुड़े हुए हैं जो लगातार उन्हें गरीबों व असहायों की सहायता के लिए सुझाव देते रहते हैं. सोशल मिडिया हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा सा बन गया है और इसके सकारात्मक प्रभाव लगातार देखने को मिल रहे हैं. उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को बताया कि अपने इरादों को जिंदा रखें.

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