लाइक शेयर कमेंट की 9वीं कड़ी में इस बार के खास मेहमान थे सुभाष मिश्र. वो एक ऐसे शख्स हैं जो कई विधाओं में न सिर्फ रूचि रखते हैं बल्कि उन्हें महारत भी हासिल है. विशेष रूप से क्रिएटिव फील्ड में सुभाष मिश्र छत्तीसगढ़ का एक जाना पहचाना चेहरा हैं. छत्तीसगढ़ शासन में अपर आयुक्त, विकास के पद पर पदस्थ अधिकारी होने के साथ ही वो सक्रिय ट्रेड यूनियन लीडर हैं. जब भी सरकारी मुलाजिमों के अधिकारों की लड़ाई होती है, वो कदम से कदम मिलाते हुए नेतृत्व करते हैं. इसके अलावा रंगमंच की सेवा में पिछले कई वर्षों से लगे हुए हैं. रायपुर इंटरनेश्नल फिल्म फेस्टिवल के चेयरमेन होने के साथ ही वो छत्तीसगढ़ फिल्म्स एंड विजुअल आर्ट्स के मुखिया हैं. साहित्य में गहरी रूचि रखने वाले सुभाष मिश्र रचनात्मक जगत के सच्चे साधक हैं.
कंसोल ग्रुप की युवा टीम के साथ गर्मजोशी से मुलाकात करते हुए उन्होंने समाज और सोशल मीडिया के अलावा कई मुद्दों पर खुल कर अपने विचार रखे.
मां से सीखा टाइम मैनेजमेंट
एक साथ इतना काम कोई कैसे कर सकता है, इस सवाल के जवाब में श्री सुभाष कहते हैं कि उन्होंने टाइम मैनेजमेंट और मल्टीटास्किंग का काम अपनी मां को देखकर सीखा. अपना बचपन याद करते हुए बताया कि मां घर में सबसे पहले उठ कर तैयार हो जाती थी. फिर रसोई में सभी के लिए सुबह की चाय नाश्ते की तैयारी के साथ ही भोजन की तैयारी करतीं. घर के बाकी सदस्यों के जागने के वक्त में चाय बनकर तैयार होती. हम नहाकर आते, तो भोजन तैयार रहता था. अपने जागने के एक घंटे के भीतर ही मां बहुत सारे काम निपटा लेती थी. ये देखकर मैंने टाइम मैनेजमेंट का फंडा समझा.
अपनी पहचान बनाने की जिद
सुभाष बताते हैं कि उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान ही एक अखबार के लिए काम करना शुरू कर दिया था. इसी बीच जब कॉलेज बदलने की बारी आई, तो नए कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें रेगुलर सीट पर एडमिशन देने से मना कर दिया. वो प्रिंसिपल नियम कायदे के बड़े सख्त थे और उन्हें लग रहा था कि सुभाष अपनी नौकरी के चलते कॉलेज में वक्त से नहीं पहुंच पाएंगे. लेकिन बातचीत के दौरान प्रिंसिपल महोदय ने श्री सुभाष के आवेदन पत्र में उनके बड़े भाई वरिष्ठ पत्रकार स्व. श्री बबन प्रसाद मिश्र जी का नाम पढ़ा और इससे प्रभावित होते हुए उनको अपने कॉलेज में एडमिशन दे दिया. सुभाष बताते हैं कि एडमिशन मिलने की खुशी तो हुई लेकिन ये भी एहसास हो गया कि ये एडमिशन उनके बड़े भाई के नाम से मिली है. श्री सुभाष ने उसी वक्त अपने मन में ये ठान लिया कि वो अपनी अलग पहचान बनाएंगे. हालांकि सुभाष कहते हैं कि उनके बड़े भाई पितातुल्य थे और हमेशा उनसे प्रेरणा मिली.
दुनिया में अच्छे लोग भी हैं
सुभाष मिश्र बताते हैं कि अलग-अलग लोगों से उन्होंने बहुत सी चीजें सीखीं जो आगे चलकर उनकी सफलता में महत्वपूर्ण रहे. अपनी पहली नौकरी के दिनों को याद करते हुए वो कहते हैं कि लंच के वक्त सभी लोग एक साथ टिफिन करते थे, जिससे आपसी मेलजोल बढ़ा और लोगों से बातचीत के दौरान कुछ नया सीखने को मिला. सुभाष ये भी बताते हैं कि वो एक स्वतंत्रता सेनानी के बेटे थे और ब्राह्मण परिवार में जन्में थे लेकिन इसके बावजूद उनके मन में कभी जात-पात की भावना नहीं थी. वो इंसान को सिर्फ इंसानियत से पहचानते हैं. सुभाष जी का कहना हैं कि दुनिया में अच्छे लोग हैं, जो आपको आगे बढ़ने में मदद करते हैं. आपको भी अपने आस-पास के लोगों की मदद के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए. उन्होंने बताया कि वो नौजवानों को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं. थिएटर के माध्यम से भी वो कई प्रतिभावान युवाओं को मंच देने का प्रयास करते हैं.
महिलाएं ज्यादा मजबूत होती हैं-
सुभाष मिश्र मानते हैं कि पुरूष दिखने में मजबूत होते हैं लेकिन महिलाएं हकीकत में ज्यादा मजबूत होती हैं. जेंडर पर कई ट्रेनिंग सेशन ले चुके सुभाष जी का स्पष्ट मत है कि जमाना तेजी से बदल रहा है लेकिन अभी भी कई पुरूष इस गलतफहमी से बाहर नहीं आ पाए हैं कि महिलाएं उनके अधीन हैं. अपनी धर्मपत्नी रचना की तारीफ करते हुए वो कहते हैं कि मैं बहुत बात करने वाला इंसान, अलग-अलग क्षेत्र में रूचि रखने वाला और मेरी पत्नी को मेरे काम-धाम में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं था. उन्हें संगीत से प्रेम था. लेकिन आपसी तालमेल से जिंदगी की गाड़ी प्रेम से आगे बढ़ी है और बढ़ती जा रही है. रचना को पहले मेरा थियेटर प्रेम उतना रास नहीं आता था, मगर धीरे धीरे वो जब समझ गई कि ये मेरा पैशन है और मैं बदलने वाला नहीं हूं, तो उसने मेरे काम में हाथ बँटाना शुरू कर दिया. आज मेरे रंगमंच वाली एक्टिविटीज की वो मैनेजर है. महिलाएं खुद को हालात के हिसाब से जल्दी ढाल लेती हैं, ये भी उनकी मजबूती का ही उदाहरण है.
अब ब्रेकिंग न्यूज का दौर है-
आज जमाना बहुत फास्ट है. सुबह की खबर पहले शाम तक पुरानी होती थी, अब दोपहर तक बासी हो जाती है. सोशल मीडिया में टाइमिंग का बड़ा खेल है. इसलिए वक्त की नज़ाकत को समझना जरूरी है. डिजिटल मीडिया ने दुनिया की रफ्तार को बहुत बढ़ा दिया है. लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में हमें अपने सोशल वैल्यूज से समझौता नहीं करना चाहिए. मुझे बहुत दुख होता है कि आज के समाज में कई विसंगतियां देखी जाती हैं. गरीब, लाचार और जरूरतमंद के प्रति समाज की जिम्मेदारी है लेकिन हम सिर्फ सरकार और सिस्टम के भरोसे रहते हैं. हमें अपनी ओर से समाज के लिए योगदान देना चाहिए. साथ ही डिजिटल मीडिया में सही खबरों के अलावा अफवाह भी तेजी से फैलते हैं इसलिए आपको किसी बात पर यकीन करने से पहले उसकी सत्यता की जांच करनी चाहिए.
कंसोल ग्रुप द्वारा शुरू किए गए लाईक शेयर कमेंट मुहीम को लेकर सुभाष मिश्र जी की प्रतिक्रिया
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