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इस हफ़्ते लाइक शेयर कमेंट के 14वें एपिसोड में हमारे मेहमान थे श्री रवि तिवारी जी. सीमेंट इंडस्ट्री में साढ़े तीन दशक के एक्सपीरियंस के साथ श्री रवि तिवारी देश की अग्रणी सीमेंट निर्माता कंपनी श्री सीमेंट्स में वाइस प्रेसिडेंट (चीफ एक्जीक्यूटिव) की जिम्मेदारी निभा रहे हैं. रवि जी के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ और बिहार के दो प्लांट्स संचालित हैं इसके अलावा बंगाल, ओडिशा और झारखंड में नए प्लांट्स स्थापित हो रहे हैं. आज से करीब 36 वर्ष पहले सेंचुरी सीमेंट्स में एक इंटर्न की तरह 400 रू. प्रतिमाह से अपनी नौकरी शुरू करने वाले रवि तिवारी 30 वर्षों तक उस संस्थान से जुड़े रहे और जीएम तक का सफर तय किया और इसके बाद आज श्री सीमेंट्स में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. अपने उम्र के इस दौर में हर वक्त ऊर्जावान रहने वाले रवि तिवारी अपनी जिंदगी, अपने उसूलों पर जीने में विश्वास करते हैं. एक सक्सेसफुल प्रोफेश्नल करियर के अलावा साहित्यिक, छत्तीसगढ़ी फिल्म, रचनात्मक, एडवर्टाइजमेंट, फिल्म, दूरदर्शन, आकाशवाणी, स्पोर्ट्स एसोसिएशन, वाइल्ड लाइफ और हॉर्टिकल्चर सोसायटी से जुड़े रवि तिवारी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. इतने व्यापक क्षेत्रों में अपनी रूचि रखने वाले रवि जी के जिंदगी जीने का अंदाज बिल्कुल निराला है. आप भी पढ़िए रोचक बातचीत के अंश-
एक इंटर्न से वाइस प्रेसिडेंट तक का सफर
रायपुर मेरी जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों है. मेरी पढ़ाई भी यहीं हुई और मैंने आज तक अपनी नौकरी भी इसी शहर में की. आज से करीब 36 साल पहले सेंचुरी सीमेंट्स में एक इंटर्न के रूप में मैंने अपनी पहली नौकरी शुरू की थी. उस संस्थान में मैंने 30 वर्ष काम किए और जीएम के पद तक पहुंचा. इन तीस सालों में मैंने बहुत कुछ सीखा. सीमेंट इंडस्ट्री में ही इतने वर्षों तक काम करने का फायदा ये हुआ कि एक सीमेंट प्लांट के लिए जमीन लेने से लेकर उसके प्रोडक्शन होने तक एक-एक काम के बारे में पूरी बारीकी से जानकारी हो गई. इसके लिए मैंने भी कमिटमेंट से काम किया और हर नई चीज जानने की इच्छा रखी. इसी का नतीजा था कि मुझे श्री सीमेंट्स की ओर से जब वाइस प्रेसिडेंट पद पर काम करने का प्रस्ताव आया तो रायपुर को अपना हेड ऑफिस बनाने की मेरी शर्त भी मानी गई. अपने शहर रायपुर से मुझे प्यार है. यहां काम करने की जिद के चलते मैंने कई ऑफर्स ठुकराए, और मुझे आज इसका कोई अफसोस नहीं है. मेरा मानना है कि आप ईमानादारी के साथ अपना काम करें तो अवसरों की कोई कमी आपके पास नहीं होगी.
एक चाइनीज ने मेरे सोचने का नजरिया बदल दिया
बात 1990 की है जब एशियाड बिजिंग में मुझे भारतीय टीम के साथ ऑबजर्वर के रूप में चीन जाने का मौका मिला. वहां हम करीब एक महीने रहे. वहां रहने के दौरान मेरी मुलाकात एक चीनी नौजवान से हुई वह ट्रांसलेटर था जिसकी चीनी और हिंदी दोनों भाषाओं पर बेहतरीन पकड़ थी. उसकी शुद्ध हिंदी भाषा से प्रभावित होकर एक दिन मैं उससे बात करने लगा. मेरी उत्सुकता ये जानने में थी कि कैसे और कहां से उसने इतनी शुद्ध हिंदी भाषा सीखी. इसके जवाब में उसने बताया कि जिस यूनिवर्सिटी से उसने पढ़ाई की है वहां दो विदेशी भाषाओं (जर्मनी और हिंदी) में से किसी एक की पढ़ाई करने का विकल्प था. अपने शिक्षक की सलाह पर उसने जर्मन के बजाए हिंदी भाषा पढ़ने का निर्णय लिया. उसे बताया गया था कि भारत एक बड़ा देश है, हिंदी का जानकार होने पर उसे वहां नौकरी मिल जाएगी. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद बहुत उम्मीद लिए, नौकरी की तलाश में भारत पहुंचा लेकिन दर-दर भटकने के बाद भी उसे कहीं नौकरी नहीं मिली. अंत में थककर वह वापस अपने देश चीन लौट आया. अपनी कहानी सुनाते हुए उसने कहा कि भारत में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी की अहमियत कम है. वहां के लोग अपने पालतु कुत्ते से भी हिंदी में बात करना अपनी तौहीन समझते हैं. उस चीनी आदमी की बात मेरे दिल में चुभ गई. मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि वाकई हमारे देश में अपनी हिंदी भाषा, अपने रहन-सहन, अपने संस्कृति को लेकर हमारे भीतर गर्व नहीं है और अपनी पहचान को लेकर हम हीन भावना से ग्रसित हैं. उस दिन मेरे नजरिए में बड़ा बदलाव हुआ. मैं आज भी उसकी बात भूल नहीं पाता हूं, कई बार मुझे लगता है कि उस चीनी ने हम भारतवासियों को गाली दे दी हो. हालांकि उसने कोई गलत बात नहीं की थी लेकिन उसने एक कड़वी सच्चाई कह दी थी. इसका असर ये हुआ कि उस घटना के बाद मैं अपने आप पर, अपनी संस्कृति, शहर, परिवार, लोग और अपने काम पर गर्व करने लगा.
ईश्वर से परेशानी झेलने की ताकत मांगा-
हममें से कई लोग जब समस्याओं से घिर जाते हैं, तो अक्सर ईश्वर से शिकायत करने लगते हैं कि आखिर मेरे साथ बुरा क्यूं हुआ? भगवान हर बार मेरी परीक्षा क्यों लेता है… वगैरह वगैरह… लेकिन मेरा मानना है कि हमें परेशानी या बुरा वक्त आने पर अपनी किस्मत को कोसना नहीं चाहिए. हर किसी की जिंदगी में अच्छा और बुरा दोनों वक्त आता है. मैंने कभी ईश्वर से ये नहीं मांगा कि बुरा वक्त न आए या मेरे जीवन में कोई परेशानी ही न हो. बल्कि मैंने हमेशा ईश्वर से यही कहा है कि मुझे इस समस्या को हल करने की ताकत देना. तकलीफों और मुश्किल हालातों का सामना करने के लिए हौसला दे और मैं अपने साथियों से भी यही कहता हूं कि बुरे वक्त से डर कर भागने की जरूरत नहीं है, बल्कि उसका सामना करना चाहिए और अपनी किस्मत पर रोने के बजाय ईश्वर से उसे सहने की ताकत मांगना चाहिए.
असली भगवान तो प्रकृति है
मैं किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना ये कहना चाहता हूं कि मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरूद्वारे ये सब आस्था के केंद्र हैं. इन स्थानों पर हम अपने आस्था के चलते पत्थर की मूर्ति को भगवान मानकर पूजते हैं. हर धर्म के अपने-अपने रीति रिवाज हैं. कोई भी धर्म किसी दूसरे के तरीके को नहीं मानता तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. सबके इबादत के तरीके बिल्कुल अलग अलग हैं. लेकिन अगर ईश्वर एक है, तो दुनिया भर में उसका प्रभाव एक तरह का ही होना चाहिए. मेरा मतलब है अगर किसी ने ईश्वर के साथ गलत या अनुपयुक्त गतिविधि की तो उसका प्रभाव या असर दिखना चाहिए और धरती के हर हिस्से में एक जैसा होना चाहिए. लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है. हिंदू कर्मकांड में ग्रहों की पूजा-पाठ, अनुष्ठान की बड़ी मान्यता है लेकिन विदेशों में ऐसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है. तो सवाल ये है कि क्या सिर्फ भारत देश के लोगों के ग्रह अच्छे या बूरे हो सकते हैं, दूसरों पर इसका असर क्यों नहीं पड़ता. मैं एक आस्तिक आदमी हूं. ईश्वर पर मेरी आस्था है लेकिन ईश्वर कौन है और कहां है इस पर मेरे विचार कुछ अलग हैं. मैं प्रकृति को ही ईश्वर मानता हूं. नदी, पेड़-पौधे, पहाड़, जलवायु, हवा, स्वच्छता यही ईश्वर है. आप प्रकृति से छेड़छाड़ करके देखिए आपको इसका प्रभाव तुरंत दिखना शुरू हो जाएगा. क्या बिना ऑक्सीजन के कोई इंसान जीवित रह सकता है चाहे वह किसी भी धर्म, किसी भी भगवान या किसी भी देश का पुजारी क्यों न हो?
2650 एकड़ जमीन खरीदी लेकिन एक रूपए की गड़बड़ी नहीं हुई.
जब मैंने श्री सीमेंट्स को ज्वाइन किया तो कंपनी का यहां ऑफिस भी नहीं था. सारा काम राजस्थान स्थित हेड ऑफिस से ही हुआ करता था. किसी भी प्लांट के लिए सबसे पहला काम जमीन अधिग्रहण का होता है. ये सबसे पेचिदा काम होता है. आप मीडिया में भी देखते हैं कि कंपनी के लिए जमीन खरीदने पर ही सबसे ज्यादा विवाद होते हैं. अपनी कंपनी के लिए जब मैंने ये काम करना शुरू किया तो सबसे पहले वहां से जमीन दलालों को हटा दिया. सीधे गांव वालों के एक-एक घर जाकर उनसे बात करना शुरू किया. मैंने उनसे एक भी झूठा वादा नहीं किया और न ही इस खरीदी में 1 रू. की भी धांधली हुई. इसी मेहनत और सच्चाई का असर हुआ कि करीब 2650 एकड़ जमीन अधिग्रहण में कोई भी विवाद सामने नहीं आया. मैं आज भी उस क्षेत्र में जाता हूं और वहां के गांव वालों से मुलाकात करता हूं और वे लोग स्वागत करते हैं.
मुलायम सिंह का कॉल आया
एक रोचक किस्सा हुआ मेरे साथ. ये बात 1997 की है जब मुलायम सिंह यादव केंद्रीय रक्षा मंत्री थे. उस वक्त यूपी में एक दलित के साथ हुई किसी घटना को लेकर मायावती और अन्य राजनेताओं की बयानबाजी चल रही थी. इसी मसले पर मुलायम सिंह ने भी टिप्पणी की थी और अखबार पर संबंधित खबर पढ़कर मैंने उन्हें एक चिट्ठी लिखी. मैं उनके वक्तव्य से सहमत नहीं था और मैंने उन्हें निःसंकोच चिट्ठी प्रेषित करते हुए अपने विचार से अवगत कराया. मैंने लिखा था कि अब वक्त आ गया है जब हमें मिलकर इस भेदभाव को मिटाना होगा. मैंने बिल्कुल एक आम आदमी की हैसियत ये चिट्ठी उन्हें लिखी थी और इसके जवाब की कोई अपेक्षा या संभावना भी नहीं थी. लेकिन मेरे पत्र भेजने के करीब एक हफ्ते बाद शाम के वक्त मेरे घर की लैंडलाइन पर एक फोन आया. दूसरी ओर से एक आवाज आई कि- “हैलो! रविकांत जी से बात हो सकती है, मैं मुलायम सिंह बोल रहा हूं.” ये सुनकर मुझे विश्वास ही नहीं हुआ. फिर हमारी करीब 10-15 मिनट चर्चा हुई. उन्होंने बताया कि उनको मेरा पत्र मिला औऱ वो इसे पढ़कर प्रभावित हुए. इसी के चलते उन्होंने मुझे फोन किया है. जब मैंने ये बात अपने दोस्तों को सुनाई तो किसी ने यकीन नहीं किया. उन्होंने मुझे चर्चा के लिए दिल्ली बुलाया, मैंने वहां जाकर उनसे मुलाकात की और यहां से शुरू हुई दोस्ती आज भी बरकरार है. बाद में चुनाव के वक्त जब वो रायपुर प्रवास में आए तो मेरे घर पर पधारे. राजनीतिक विचारधार उनकी जो भी हो लेकिन मुलायम सिंह दोस्ती निभाने में विश्वास रखते हैं.
व्यावहारिक ज्ञान जरूरी है.
आखिर में अपनी बात रखते हुए मैं ये कहना चाहता हूं कि आज हमें आने वाली पीढ़ी को व्यावहारिक ज्ञान देना चाहिए. पढ़ाई के बाद युवा सिर्फ नौकरी नहीं बल्की जिंदगी जीने के तरीके भी जानें. काम जो भी करो उसमें डूबना जरूरी है. इसी एटिट्यूड से ही अच्छी जिंदगी बिताई जा सकती है. आज जो घरेलु विवाद देखने को मिलते हैं, वो सब व्यावहारिक ज्ञान की कमी के चलते भी है. लड़कियों को ईश्वर ने लड़कों के मुकाबले ज्यादा एडजस्ट करने वाला बनाया है. हमें उनकी इज्जत करनी चाहिए और लड़कियों को भी शादी के बाद कुछ समय वहां के लोगों को समझने की कोशिश करते हुए अपनी गाड़ी आगे बढ़ानी चाहिए. कुछ साल लगते हैं, फिर एक बार गाड़ी पटरी पर हो तो पूरी रफ्तार से उसे आगे बढ़ाया जा सकता है. देश में औरत और आदमी का दर्जा बराबरी का होना चाहिए. मैं अपनी पत्नी की उम्र और सेहत के लिए उसके साथ 23 सालों से करवाचौथ का निर्जला उपवास रखता हूं. मेरा मानना है कि केवल औरतें ही अपने पति, बच्चों और परिवार के लिए उपवास क्यों रखें.
और इस तरह कई मुद्दों पर बात करते हुए इस बार का 14 वां एपिसोड श्री रवि तिवारी जी के साथ संपन्न हुआ. उनके मौलिक विचार सुनकर और जिंदगी के उसूलों की बातें जानकर सभी युवा कंसोलर्स बहुत प्रभावित हुए. अब इंतजार है लाइक शेयर कमेंट की अगली कड़ी की जिसमें फिर से मुलाकात होगी एक और खास शख्सियत से.
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